तेजाब: कई सवाल अभी बाकी हैं

‘सुदंर चेहरा, ओजस्वी व्यक्तित्व कभी उसकी पहचान थी।
काला चश्मा, नकाब और अभिशप्त जीवन अब उसका वजूद है।’acid atack
किसी सनकी दरिंदे के तेजाबी हमले का शिकार हुई ये मासूम कलियां इस कदर कुचली जा चुकी हैं कि इनके जीने का मकसद खत्म हो चुका है। यंत्रणा और पीड़ा से भरा जीवन जीने को मजबूर ये लड़कियां अब इच्छामृत्यु मांगने को मजबूर हैं।
पिछले कुछ दशकों में गैंग रेप की तरह तेजाब भी औरतों के खिलाफ एक अचूक हथियार बन चुका है।
‘छेड़छाड़ का विरोध किया, प्यार ठुकराया, शादी से इनकार किया, इगो को ठेस पहुंचाई, यहां तक कि इगनोर भी किया तो तेजाब डाल कर झुलसा दो। झुलसे चेहरे और जख्मों के साथ जिंदगी भर रोएगी और अफसोस करेगी कि क्यों लिया पंगा।’
हाल ही में अदालत द्वारा तेजाबी हमलों पर कुछ कठोर नियम बनाने से आस तो जगी है लेकिन ये ‌नियम तेजाबी हमले रोकने में कितने कारगर होंगे ये कहना कठिन है।
सवाल यही उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तेजाब खुलेआम बिकना बंद हो जाएगा? क्या आई कार्ड द्वारा खरीदा गया तेजाब किसी को नहीं जलाएगा? क्या तेजाब हमला गैर जमानती होने से ऐसे हमले रुकेंगे?
पीड़िता को मुआवजा बस तीन लाख। ये तीन लाख क्या जिंदगी भर की बेबसी और जख्मों पर मरहम लगा पाएंगे। गौर कीजिए पांच दस लाख तो इलाज में ही खर्च हो जाते हैं। शादी ब्याह, बच्चे, नौकरी सभी ख्बाव को तिलांजलि मिलने के बाद आखिर कोई जिए भी तो किस सहारे।
ऐसे ही कुछ सवाल और संशय हर उस लड़की के मन में हो सकते हैं जो घर से बाहर निकलती है और इस संगीन और संशय भरी दुनिया से उसका रोज ही साबका होता है।
कई मायनों में भारत से पिछले और दकियानूसी कहे जाने वाले पड़ोसी देश बांग्लादेश ने 2002 में तेजाबी हमले की सजा के तौर पर मृत्यूदंड का प्रावधान बना लिया था। और तो और पाकिस्तान ने भी पिछले साल तेजाब हमलों से निपटने के लिये एक अलग बिग संसद में पास कराया था। इस बिल में पीड़िता के रिहेबिलिटेशन संबंधी कई नियम बने। इधर भारत सरकार अभी केवल तेजाब की बिक्री को ही रोकने के प्रयासों में लगी है।
जरूरत सरकारी उपायों के साथ साथ इस बात की है कि समाज को ऐसा बनाया जाए कि लोग जीवन खासकर नारी जीवन का मूल्य समझ सके।

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