दुनिया में हर जगह लोग शांतिपूर्वक मरने की बात करते हैं। मृत्यु की बेचैनी या अशांति को दूर करने के लिए एक जो आसान सा काम आप कर सकते हैं वह क्या है बता रहे हैं सद्गरू जग्गी वासुदेव।
जो व्यक्ति मृत्यु के करीब पहुंच गया है। उस व्यक्ति के पास लगातार पूरे दिन रात एक दीया जला कर रखें।
घी का दीपक बेहतर होगा। इसके पीछे एक बड़ा कारण है।
घी के दीपक से एक खास आभामंडल बनता है, जिससे मृत्यु की अस्थिरता और बेचैनी कुछ हद तक कम की जा सकती है। एक उपाय और कर किया जा सकता है।
धीमे स्वर में ‘ब्रह्मानंद स्वरूप’ जैसा कोई मंत्र सीडी पर चला दें। इस तरह की कोई ऊर्जावान ध्वनि भी अशांतिपूर्ण मृत्यु की संभावना को टाल सकती है। दिया जलाने और मंत्रोच्चारण की प्रक्रिया मृत्यु के बाद भी 14 दिनों तक जारी रहनी चाहिए।
कारण यह है कि मेडिकल भाषा में वह व्यक्ति भले ही मर चुका हो लेकिन उसका अस्तित्व अभी नहीं मरा है। चाहे उस व्यक्ति का शरीर जला दिया जाए, वह फिर भी पूरी तरह मृत नहीं है क्योंकि दूसरी दुनिया में उसके जाने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है।
इसी आधार पर भारत में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद 14 दिनों तक विभिन्न तरह के संस्कार होते हैं। इन संस्कारों के पीछे का ज्ञान काफी हद तक खो गया है। बहुत कम लोग वास्तव में उसका महत्व समझते हैं।
जब किसी की मृत्यु होती है तो जो भी चीज उसके शरीर के घनिष्ठ थी, उसे स्पर्श करती थी, जैसे अंदरूनी कपड़े, उन्हें जला दिया जाता है।
बाकी कपड़ों, गहनों को तीन दिनों के भीतर एक नहीं, कई लोगों के बीच बांट दिया जाता है। सब कुछ इतनी जल्दी बांट दिया जाता है कि मृत व्यक्ति भ्रमित हो जाता है।
उसे पता नहीं चलता कि अब वह कहां मंडराए। भारत में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद 14 दिनों तक विभिन्न तरह के संस्कार होते हैं। दुर्भाग्यवश इन संस्कारों के पीछे का ज्ञान खत्म हो चुका है और लोग आजीविका के लिए खानापूर्ति कर रहे हैं। बहुत कम लोग वास्तव में उसका महत्व समझते हैं।
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