इतिहास की किताबें बताती है कि गांधीजी को महात्मा की उपाधि रबीन्द्रनाथ
टैगोर ने दी थी लेकिन गुजरात सरकार ऐसा नहीं मानती। गुजरात सरकार का कहना
है कि सौराष्ट्र क्षेत्र के किसी अंजान पत्रकार ने यह उपाधि गांधी जी को दी
थी। यह मामला अब गुजरात हाईकोर्ट के सामने है। राजकोट जिला पंचायत शिक्षा
समिती ने राज्स्व विभाग के पटवारी पद के लिए हुई परीक्षा में पूछे गए एक
सवाल के बाद शुरू हुआ। इसमें पूछा गया था कि बापू को पहली बार महात्मा की
उपाधि किसने दी थी। सही उत्तर चुनने के लिए तीन विकल्प दिए गए थे। इसमें
पहला टैगोर, दूसरा एक गुमनाम पत्रकार और तीसरा किसी अन्य का नाम था।
राजकोट जिला पंचायत शिक्षण समिति द्वारा आयोजित इस परीक्षा में शामिल होने वाली एक अभ्यर्थी संध्या मारू ने टैगोर के आगे सही का निशान लगाकर अपना जवाब दिया। लेकिन कापी जांचने के समय उनके जवाब को गलत मानकर निगेटिव मार्किंग प्रणाली के कारण नंबर काट लिये गये। मारू ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन शिक्षण समिति ने अदालत में गांधी के सचिव रहे महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई की आत्मकथा के हवाले से मारू के जवाब को गलत बताया। समिति की ओर से पेश वकील हेमंत मुनशाव ने कोर्ट को बताया कि परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र एक बाहरी एजेंसी ने तैयार किया था जो नारायण देसाई की आत्मकथा पर आधारित था।
गांधीजी के साथ अपने शुरुआती 20 साल गुजारने वाले देसाई ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्हें (गांधीजी) सबसे पहले सौराष्ट्र में जेठपुर के एक गुमनाम पत्रकार ने महात्मा कहकर संबोधित किया था। उस समय 1916 में बापू दक्षिण अफ्रीका में थे। इसके बाद टैगोर ने उन्हें महात्मा कहा था।’ याचिका पर गुरुवार को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट के जज जेबी पार्दीवाला ने सरकार को इस तरह की परीक्षाएं बेहद सतर्कता से कराने को कहा। इसके बाद मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 फरवरी की तारीख तय कर दी।
राजकोट जिला पंचायत शिक्षण समिति द्वारा आयोजित इस परीक्षा में शामिल होने वाली एक अभ्यर्थी संध्या मारू ने टैगोर के आगे सही का निशान लगाकर अपना जवाब दिया। लेकिन कापी जांचने के समय उनके जवाब को गलत मानकर निगेटिव मार्किंग प्रणाली के कारण नंबर काट लिये गये। मारू ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन शिक्षण समिति ने अदालत में गांधी के सचिव रहे महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई की आत्मकथा के हवाले से मारू के जवाब को गलत बताया। समिति की ओर से पेश वकील हेमंत मुनशाव ने कोर्ट को बताया कि परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र एक बाहरी एजेंसी ने तैयार किया था जो नारायण देसाई की आत्मकथा पर आधारित था।
गांधीजी के साथ अपने शुरुआती 20 साल गुजारने वाले देसाई ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्हें (गांधीजी) सबसे पहले सौराष्ट्र में जेठपुर के एक गुमनाम पत्रकार ने महात्मा कहकर संबोधित किया था। उस समय 1916 में बापू दक्षिण अफ्रीका में थे। इसके बाद टैगोर ने उन्हें महात्मा कहा था।’ याचिका पर गुरुवार को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट के जज जेबी पार्दीवाला ने सरकार को इस तरह की परीक्षाएं बेहद सतर्कता से कराने को कहा। इसके बाद मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 फरवरी की तारीख तय कर दी।
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